हरिद्वार। स्वामी शिवानंद ने वर्तमान सामाजिक स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा कि आज पूरा विश्व भ्रष्टाचार की चपेट में है। पारिवारिक संबंधों में प्रेम और विश्वास की जगह अब स्वार्थ और धन की प्रधानता हो गई है। “पति-पत्नी और भाई-भाई तक चंद सिक्कों के लिए अलग हो जाते हैं।”
उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था से संस्कार और आत्मिक विकास लुप्त हो चुका है। “आज के संतों में विद्वता, त्याग और वैराग्य दुर्लभ हो गए हैं। जब मनुष्य स्वयं अशांत है तो वह दूसरों को शांति कैसे देगा?” उन्होंने गंगा की दुर्दशा का उल्लेख करते हुए कहा कि पहले साधु-महात्मा गंगा किनारे तपस्या करते थे, पर आज गंगा ही खतरे में है।
गुरु की पहचान कैसे करें?सच्चे गुरु की पहचान यह है कि वह शांति में स्थित हो, विपरीत लिंग, रूप या धन का आकर्षण न हो, और सांसारिक वस्तुओं से आसक्त न हो।”
सत्य कभी पराजित नहीं होता। अच्छे लोग आज सताए जा रहे हैं, पर धर्म की विजय सदा होती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि कथाकार आज शास्त्रों की मर्यादा का पालन नहीं करते, और ब्राह्मण जब कर्मकांड करता है तो यजमान को बिना उचित दान दिए फल प्राप्त नहीं होता।
गुरु पूर्णिमा के पर्व का सार बताते हुए कहा, “यह दिन इसलिए है कि लोग गुरु के पास जाकर ज्ञान प्राप्त करें, तपस्वी बनें और त्याग का मार्ग अपनाएं।”
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हरिद्वार स्थित मातृ सदन में श्रद्धा, भक्ति और आध्यात्मिक चेतना का अनोखा संगम देखने को मिला। कार्यक्रम की मुख्य विशेषता रहे पूज्य स्वामी शिवानंद सरस्वती महाराज के उद्गार, जिन्होंने गुरु तत्व की महत्ता और वर्तमान समाज की दिशा पर गहन प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा कि जब स्वयं भगवान अवतार लेते हैं, तब भी वे गुरु की शरण में जाते हैं। गुरु न केवल ज्ञान का स्रोत होता है, बल्कि वह उस तत्व का परिचायक है जो मनुष्य को माया के बंधन से बाहर निकालता है। “जब जीव जन्म लेता है, तो माया उसे घेर लेती है और वह इस अनित्य संसार की सच्चाई को समझ नहीं पाता। उन्होंने अंत में कहा कि हरिद्वार जैसे तपोभूमि में भी अधार्मिकता बढ़ रही है, इसलिए सच्चे गुरुओं और भक्तों की आज अधिक आवश्यकता है।
इस पावन अवसर पर बड़ी संख्या में विभिन्न शहरों से श्रद्धालु उपस्थित रहे और श्री गुरुदेवजी के वचनों से आत्मिक बल प्राप्त किया। कार्यक्रम का समापन प्रसाद वितरण के साथ हुआ।